Skip to content

SCIENCE CLASS 10

हमारा राष्ट्र ध्वज

यह तीन रंग की समान चौड़ाई की आयताकार पट्टियों से बना है। सबसे ऊपरी पट्टी केसरिया बीच में श्वेत पट्टी और निचली पट्टी हरे रंग की होती है।

बीच के श्वेत पट्टी के केंद्र में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र बना है।इसमें समान दूरी पर स्थित 24 तीलियाँ बनी होती हैं।

पूरा ध्वज आयताकार होता है,जिसमें लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है।

संविधान सभा में राष्ट्रध्वज के बारे में डॉक्टर राधाकृष्णन ने बताया कि भगवा या केसरिया रंग “त्याग और निस्वार्थता” का प्रतीक है। श्वेत रंग “प्रकाश और सत्य के पथ” का प्रतीक है और हरा रंग “धरती और पेड़-पौधे के साथ हमारे संबंध” को व्यक्त करता है।

अशोक चक्र धर्म के नियम का चक्र है।यह चक्र गति का भी प्रतीक है। गति में जीवन है,भारत को गतिमान रहना और आगे बढ़ाना है।

ध्वज की मर्यादा और सम्मान के अनुकूल जो भारतीय राष्ट्रीय ध्वज संहिता में विस्तार से लिखा हुआ है, कोई भी राष्ट्रीय ध्वज सभी दिन, समारोह या अन्य अवसरों पर फहरा सकता है।

जहां किसी सार्वजनिक भवन पर ध्वज फहराने का चलन है,इसे रविवार और छुट्टियों के दिन भी फहराया जाता है। उसे भवन पर किसी अत्यंत विशिष्ट अवसर पर रात में भी ध्वज फहराया रखा जा सकता है।

राजकीय/ सैनिक/ अर्ध-सैनिक अंतिम संस्कारों के अतिरिक्त किसी भी अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज को कुछ लपेटने के कार्य में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। उन अवसरों पर भी ध्वज को चिता या कब्र में नहीं डाला जाता।

यदि ध्वज फट गया हो तो इसे जैसे-तैसे फेक नहीं दिया जाता बल्कि सम्मान पूर्वक एकांत में प्राय: जलाकर नष्ट किया जाता है।

राष्ट्रध्वज को पोशाक या पहनावे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है किंतु कमर के नीचे या अधोवस्त्र के रूप में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

ध्वज के ऊपर किसी भी तरह का कुछ लिखना मना है। इसे किसी तरह के विज्ञापन के लिए भी प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

राष्ट्रध्वज को एक ही स्तंभ पर दूसरे ध्वज के साथ नहीं फहराया जा सकता है।

जब कोई विदेशी महानुभाव सरकार द्वारा प्रदत्त कार में चलते हैं, तो कार में आगे दाहिनी ओर अपने देश का राष्ट्रध्वज रहता है और अन्य देश का राष्ट्रध्वज बाई ओर रहता है।

देश के राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का निधन होने पर पूरे देश में राष्ट्रध्वज आधा झुका दिया जाता है।

राष्ट्रीय ध्वज का निरादर करना दंडनीय अपराध है।

हमें अपने राष्ट्रध्वज को प्रणाम करना और उससे प्रेम रखना चाहिए।

विज्ञान किसे कहते हैं?

हमारे आसपास जो कुछ भी घटित हो रहा है,उसका व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान (वि +ज्ञान) कहलाता है।

वि का अर्थ है – क्रम या विशेष

विज्ञान शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द “SCIENTIA” से हुई है जिसका अर्थ है ज्ञान।

विज्ञान तथ्यों, सिद्धांतों और नियमों पर आधारित होता है।

हमारे जीवन में विज्ञान के फायदे और नुकसान दोनों मौजूद हैं।

विज्ञान की दो मुख्य शाखाएं हैं: –

प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science)- इसके दो मुख्य भाग हैं- वनस्पति विज्ञान(Botany) और जंतु विज्ञान(Zoology)

भौतिकीय विज्ञान (Physical Science)
इसके दोमुख्य भाग हैं- भौतिक विज्ञान(Physics) तथा रसायन विज्ञान (Chemistry)

NCERT क्या है?

इसका हिंदी में पूरा नाम राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद है।

इसका अंग्रेजी में पूरा नाम National Council of Educational Reasearch and Training हैं।

कार्य:- स्कूली शिक्षा से जुड़े शोध करना,उसे बढ़ावा देना और समन्वय करना।शिक्षा पद्धति में बदलाव और विकास को लागू करना।

इसका मुख्यालय नई दिल्ली स्थित है।

इसकी स्थापना वर्ष 1961 में की गई थी।

वर्तमान में इसके अध्यक्ष “दिनेश प्रसाद सकलानी” है।

NCF क्या है?

इसका हिंदी में पूरा नाम राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा है।

इसका अंग्रेजी में पूरा नाम National Curriculum Framework हैं।

यह एक दस्तावेज है, जो भारत में शिक्षा की नीति और उद्देश्यों को तय करता है।(प्री स्कूल से 12वीं तक, 3 से 18 साल तक को कवर)

लक्ष्य :- बदलती दुनिया में कामयाब होने के लिए जरूरी कौशल और ज्ञान से लैस व्यक्तियों का विकास करना।

यह पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक, शिक्षण पद्धतियों को बनाने के लिए व्यापक दिशानिर्देश देता है।

NCF 2023,NEP 2020 का अहम हिस्सा है।

NEP क्या है?

इसका हिंदी में पूरा नाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति है।

इसका अंग्रेजी में पूरा नाम National Education Policy है।

यह भारत सरकार की एक नीति है, जिसका मकसद देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार करना है। NEP 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 29 जुलाई 2020 को मंजूर किया गया।

यह नीति NEP 1986 की जगह लेती है।

इस नीति के तहत शिक्षा को छात्र केंद्रित बनाने, रटने की प्रणाली खत्म करने और कौशल विकास पर जोर देने का प्रावधान है।

भारत के संविधान की उद्देशिका क्या हैं?

यह संविधान का सार है।

इसी संविधान की आत्मा और रीढ़ भी कहा जाता है।

यह प्रस्तावना के खंड संविधान को सही तरीके से लागू करने का निर्देश देते हैं।

संविधान सभा ने से 26 नवंबर 1949 को अपनाया था।

26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया, जिसे भारत के गणतंत्र दिवस (Republic day) के रूप में मनाया जाता है।

26 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था।

NEW SYLLABUS

CHAPTER-1
CHAPTER-2
CHAPTER-3
CHAPTER-4
CHAPTER-5
CHAPTER-6
CHAPTER-7
CHAPTER-8
CHAPTER-9
CHAPTER-10
CHAPTER-11
CHAPTER-12
CHAPTER-13
ACCORDING TO NEW SYLLABUS 2025

CHAPTER- प्रकाश:परावर्तन और अपवर्तन

INTRODUCTION

प्रकाश:- यह एक प्रकार की ऊर्जा है,जो हमें देखने की अनुभूति प्रदान करती है।

परावर्तन:- जब कोई किरण किसी सतह पर आपतित होकर उसी माध्यम में पुनः वापस लौटती है, तो इस परिघटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

कोई वस्तु स्वयं पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित कर देती है। यह परावर्तित प्रकाश जब हमारी आंखों द्वारा ग्रहण किया जाता है, तो हमें वस्तुओं को देखने योग्य बनाता है।

प्रकाश से प्रकाश से संबंधित अनेक सामान्य तथा अद्भुत घटनाएं हैं:-
1-दर्पण द्वारा प्रतिबिंब का बनना।
2-तारों का टिमटिमाना ।
3-इंद्रधनुष के सुंदर रंग।
4-किसी माध्यम द्वारा प्रकाश को मोड़ना, आदि।

प्रकाश सरल रेखा में गमन करता प्रतीत होता है।

प्रकाश का विवर्तन:-यदि प्रकाश के पथ में रखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत छोटी हो, तो प्रकाश सरल रेखा में चलने की बजाय उनकी किनारों पर मुड़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है।इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।इस प्रभाव की व्याख्या करने के लिए प्रकाश को तरंग के रूप में माना जाता है।

प्रकाश का “आधुनिक क्वांटम सिद्धांत” बताता है कि प्रकाश न तो तरंग है और नहीं कण। इस नए सिद्धांत में प्रकाश के कण संबंधित गुण तथा तरंग प्रकृति के बीच संबंध स्थापित किया।

TOPIC NO.1-प्रकाश का परावर्तन

दर्पण अपने ऊपर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है।

परावर्तन का नियम:-

(1)-आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है।

(2)-आपतित किरण,दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में होते हैं।

परावर्तन के यह नियम गोलीय पृष्ठों सहित सभी प्रकार के परावर्तक पृष्ठों के लिए लागू होते हैं।

समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की विशेषता निम्न है:-
1-सदैव आभासी तथा सीधा।
2-साइज वस्तु (बिंब) के साइज के बराबर।
3-प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनेगा जितनी दूरी पर दर्पण के सामने वस्तु (बिंब) रखा होता है।
4-प्रतिबिंब पार्श्व परिवर्तित होता है।

पार्श्व परिवर्तित का अर्थ:-पार्श्व परिवर्तन का मतलब है, किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनने के बाद उसकी दिशा में बदलाव होना।वस्तु का दायां हिस्सा प्रतिबिंब में बाएं हिस्से में और बायां हिस्सा दाएं हिस्से में दिखाई देना।

TOPIC NO.2- गोलीय दर्पण

गोलीय दर्पण:- ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलीय है,गोलीय दर्पण कहलाते हैं।

गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर या बाहर की ओर वक्रित हो सकता है।

अवतल दर्पण:- वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर अर्थात गोले की केंद्र की ओर वक्रित है, वह अवतल दर्पण कहलाता है।जैसे – चम्मच के अंदर का पृष्ठ।

उत्तल दर्पण:- वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित है, उत्तल दर्पण कहलाता है।जैसे- चम्मच के बाहर की ओर उभरा पृष्ठ।

गोलीय दर्पण के से संबंधित महत्वपूर्ण पद: –

1-ध्रुव(P)-गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को दर्पण का ध्रुव कहते हैं। यह दर्पण के पृष्ठ पर स्थित होता है। ध्रुव को प्राय: P अक्षर से निरूपित करते हैं।

2-वक्रता केंद्र(C)- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग है। इस गोले का केंद्र गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहलाता है। यह अक्षर C से निरूपित किया जाता है। वक्रता केंद्र दर्पण का भाग नहीं होता है। यह परावर्तक पृष्ठ के बाहर स्थित है।

अवतल दर्पण का वक्रता केंद्र परावर्तक पृष्ठ के सामने स्थित होता है।उत्तल दर्पण का वक्रता केंद्र परावर्तक पृष्ठ के पीछे स्थित होता है।

3-वक्रता त्रिज्या(R)- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग है,उसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है। इसे अक्षर R से निरूपित किया जाता है।

4-मुख्य अक्ष- गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता त्रिज्या से गुजरने वाली एक सीधी रेखा दर्पण का मुख्य अक्ष कहलाती है। मुख्य अक्ष दर्पण के ध्रुव पर अभिलंब है।

अवतल दर्पण का मुख्य फोकस- अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष के समानांतर आने वाली प्रकाश किरणें परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष पर एक विशिष्ट बिंदु पर मिलती हैं।यह बिंदु अवतल दर्पण का मुख्य फ़ोकस कहलाता है।

उत्तल दर्पण का मुख्य फोकस- उत्तल दर्पण के मुख्य अक्ष के समानांतर आने वाली किरणें, परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष पर स्थित एक बिंदु से विचलित होती हुई प्रतीत होती हैं।इस बिंदु को उत्तल दर्पण का मुख्य फ़ोकस कहते हैं।

5-फोकस दूरी(f)- गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है। इसे अक्षर f द्वारा निरूपित किया जाता है।

6-द्वारक – गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की वृताकार सीमा का व्यास दर्पण का द्वाराक कहलाता है।

छोटे द्वारक के गोलीय दर्पणों के लिए वक्रता त्रिज्या(R) फोकस दूरी(f) से दोगुनी होती है। इस संबंध को व्यक्त किया जा सकता है:- (R=2f ) यह दर्शाता है कि किसी गोलीय दर्पण का मुख्य फोकस उसके ध्रुव तथा वक्रता केंद्र को मिलाने वाली रेखा का मध्य बिंदु होता है।

किरण आरेखों का उपयोग करके गोलीय दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब का निरूपण: –

बिंब का प्रत्येक छोटा भाग एक बिंदु बिंब की भांति कार्य करता है। इन बिंदुओं में प्रत्येक से अनंत किरणें उत्पन्न होती हैं।बिंब के प्रतिबिंब का स्थान निर्धारण करने के लिए, किरण आरेख बनाते समय किसी बिंदु से निकलने वाली किरणों की विशाल संख्या में से सुविधानुसार कुछ को चुना जा सकता है। किरण आरेख की स्पष्टता के लिए दो किरणों पर विचार करना अधिक सुविधाजनक है।

कम से कम दो परावर्तित करने के प्रतिच्छेदन से किसी बिंदु बिंब की प्रतिबिंब की स्थिति ज्ञात की जा सकती है।

प्रतिबिंब के स्थान निर्धारण के लिए निम्न में से किन्हीं भी दो किरणों पर विचार किया जा सकता है: –

1-दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश किरण परावर्तन के पश्चात अवतल दर्पण की मुख्य फोकस से गुजरेगी अथवा उत्तल दर्पण के मुख्य फोकस से अपसरित होती प्रतीत होगी।

2-अवतल दर्पण के मुख्य फोकस से गुजरने वाली किरण अथवा उत्तल दर्पण के मुख्य फोकस की ओर निर्देशित किरण परावर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर निकलेगी।

3-अवतल दर्पण के वक्रता केंद्र से गुजरने वाली किरण अथवा उत्तल दर्पण के वक्रता केंद्र की और निर्देशित किरण, परावर्तन के पश्चात उसी पथ के अनुदिश वापस परावर्तित हो जाती है।

4-अवतल दर्पण अथवा उत्तल दर्पण की ध्रुव की ओर मुख्य अक्ष से तिर्यक दिशा में आपतित किरण, तिर्यक दिशा में ही परिवर्तित होती है।

सभी स्थितियों में परावर्तन के नियमों का पालन होता है।

किसी अवतल दर्पण द्वारा बिंब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिंब:

(बिंब की स्थिति)- अनंत पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- फोकस F पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक छोटा,बिंदु साइज
(प्रतिबिंब की प्रकृति)- वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- C से परे
(प्रतिबिंब की स्थिति)- F और C के बीच
(प्रतिबिंब का साइज़)- छोटा
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- C पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- C पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- समान साइज़
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- C और F के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति)- C से परे
(प्रतिबिंब का साइज़)- विवर्धित (बड़ा)
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- F पर
(प्रतिबिंब की स्थिति) अनंत पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक विवर्धित
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- P और F के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति)- दर्पण के पीछे
(प्रतिबिंब का साइज़)- विवर्धित (बड़ा)
(प्रतिबिंब की प्रकृति) आभासी एवं सीधा

अवतल दर्पण का उपयोग:-

1-टॉर्च
2-सर्च लाइट
3-वाहनों का अग्रदीप
4-शेविंग दर्पण
5-सौर भट्ठी इत्यादि।

किसी उत्तल दर्पण द्वारा बिंब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिंब: –

(बिंब की स्थिति)- अनंत पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- फोकस F पर दर्पण के पीछे
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक छोटा,बिंदु साइज
(प्रतिबिंब की प्रकृति)- आभासी तथा सीधा

(बिंब की स्थिति)- अनंत तथा दर्पण के ध्रुव P के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति)- P तथा F के बीच दर्पण के पीछे
(प्रतिबिंब का साइज़)- छोटा
(प्रतिबिंब की प्रकृति)- आभासी एवं सीधा

उत्तल दर्पण का उपयोग वाहनों के पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में किया जाता है।

समतल दर्पण के इतर उत्तल दर्पण को इसलिए भी प्राथमिकता दिया जाता है क्योंकि यह सदैव सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं, यद्यपि वह छोटा होता है।इनका दृष्टि क्षेत्र भी बहुत अधिक है क्योंकि यह बाहर की ओर वक्रित होते हैं अतः समतल दर्पण की तुलना में उत्तल दर्पण वाहन ड्राइवर को अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में समर्थ बनाते हैं।

गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन के लिए चिन्ह परिपाटी:-

गोलीय दर्पण द्वारा प्रकाश के परावर्तन पर विचार करते समय हम एक निश्चित चिन्ह परिपाटी का पालन करेंगे, जिसे नयी चिन्ह परिपाटी कहते हैं। इस परिपाटी में दर्पण के ध्रुव (P) को मूल बिंदु मानते हैं। दर्पण के मुख्य अक्ष को निर्देशांक पद्धति का x-अक्ष लिया जाता है।यह परिपाटी निम्न प्रकार है: –

1-बिंब सदैव दर्पण के बायी ओर रखा जाता है। इसका अर्थ है कि दर्पण पर बिंब से प्रकाश बाई ओर से प्राप्त होगा।
2-मुख्य अक्ष के समांतर सभी दूरियां दर्पण के ध्रुव से मापी जाती हैं।
3-मूल बिंदु से दाएं ओर माफी के सभी दूरियां धनात्मक मानी जाती हैं,जबकि मूल बिंदु से बाई और मापी गई दूरियां ऋणात्मक मानी जाती हैं।
4-मुख्य अक्ष के लंबवत तथा ऊपर की ओर मापी जाने वाली दूरियां धनात्मक मानी जाती हैं।
5-मुख्य अक्ष के लंबवत तथा नीचे की ओर मापी जाने वाली दूरियां ऋणात्मक मानी जाती हैं।

यह चिन्ह परिपाटी दर्पण का सूत्र प्राप्त करने तथा संबंधित आंकिक प्रश्न को हल करने के लिए का मददगार है।

दर्पण सूत्र तथा आवर्धन:-

गोलीय दर्पण में इसके ध्रुव से बिंब की दूरी बिंब दूरी(u) कहलाती है।

दर्पण के ध्रुव से प्रतिबिंब की दूरी प्रतिबिंब दूरी(v) कहलाती है।

ध्रुव से फोकस की दूरी फोकस दूरी(f) कहलाती है।

इन तीन राशियों के बीच एक संबंध है,जिसे दर्पण सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

सूत्र:- 1/v+1/u=1/f

यह संबंध सभी प्रकार के गोलीय दर्पण के लिए तथा बिंब की सभी स्थितियों के लिए मान्य है।

आवर्धन:-

गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न वह विस्तार जिससे ज्ञात होता है कि कोई प्रतिबिंब बिंब की अपेक्षा कितना गुना आवर्धित है।

इसे प्रतिबिंब की ऊंचाई तथा बिंब की ऊंचाई के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है।

सूत्र: आवर्धन(m)=h’/h

h’= प्रतिबिंब की ऊंचाई
h= बिंब की ऊंचाई

आवर्धन(m) बिंब दूरी(u) तथा प्रतिबिंब दूरी(v) से भी संबंधित है। इसे व्यक्त किया जाता है:-

सूत्र:- m= h’/h= -v/u

आभासी प्रतिबिंबों के लिए बिंब की ऊंचाई धनात्मक लेनी चाहिए। वास्तविक प्रतिबिंबों के लिए बिंब की ऊंचाई ऋणात्मक लेनी चाहिए।

आवर्धन में ऋणात्मक चिन्ह से ज्ञात होता है कि प्रतिबिंब वास्तविक है।आवर्धन में धनात्मक चिन्ह बताता है कि प्रतिबिंब आभासी है।

TOPIC NO.3- प्रकाश का अपवर्तन

अपवर्तन- जब प्रकाश की किरणें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं,तो वे अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं,इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन (Refraction) कहते हैं।

अपवर्तन प्रकाश की पारदर्शी माध्यम से दूसरे में प्रवेश करने पर प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण होता है।

प्रकाश का अपवर्तन निश्चित नियमों के आधार पर होता है। परावर्तन के नियम निम्नलिखित हैं: –

1-आपतित किरण,अपर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब सभी एक ही तल में स्थित होते हैं।

2-प्रकाश के किसी निश्चित रंग तथा निश्चित माध्यमों के युग्म के लिए आपतन कोण की ज्या (Sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (Sine) का अनुपात स्थिर होता है।इस नियम को “स्नेल का अपवर्तन का नियम” भी कहा जाता है। यदि i आपतन कोण तथा r अपवर्तन कोण हो तब:-

Sin i/sin r=स्थिरांक

इस स्थिरांक के मान को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक (Refractive Index) कहते हैं।

अपवर्तनांक:-

प्रकाश की किरण तिरछी गमन करती हुई एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे में प्रवेश करती है तो यह दूसरे माध्यम में अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती है। किन्ही दिए हुए माध्यमों के युग्म के लिए होने वाले दिशा परिवर्तन की विस्तार को अपवर्तनांक के रूप में व्यक्त किया जाता है। यह एक स्थिरांक है।

विभिन्न माध्यमों में प्रकाश अलग-अलग चालों से संचारित होता है।निर्वात में प्रकाश की अधिकतम चाल 3,00,000km/s होती हैं।(प्रकाश की सबसे तेज चाल)

दो माध्यमों के युग्म के लिए अपवर्तनांक का मान दोनों माध्यमों में प्रकाश की चाल पर निर्भर करता है।

अगर हम एक प्रकाश की किरण पर विचार करें जो माध्यम 1 से माध्यम 2 में प्रवेश कर रही है: –

मान लीजिए प्रकाश की चाल माध्यम 1 में v1 तथा मध्यम 2 में v2 है। माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक माध्यम 1 में प्रकाश की चाल तथा माध्यम 2 में प्रकाश की चाल के अनुपात द्वारा व्यक्त करते हैं। इसे प्राय: संकेत n21 से निरूपित किया जाता है। इसे समीकरण के रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं:-

n21=माध्यम 1 में प्रकाश की चाल /माध्यम 2 में प्रकाश की चाल

n12=माध्यम 2 में प्रकाश की चाल /माध्यम 1 में प्रकाश की चाल

माध्यम 1 एक निर्वात या वायु है तब माध्यम 2 का अपवर्तनांक निर्वात के सापेक्ष माना जाता है।यह माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक कहलाता है। यह केवल n2 से निरूपित किया जाता है। यदि वायु में प्रकाश की चाल c है तथा माध्यम में प्रकाश की चाल v है,तब माध्यम का अपवर्तनांक nm होगा।

nm=वायु में प्रकाश की चाल(c)/ माध्यम में प्रकाश की चाल (v)=c/v

माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक केवल अपवर्तनांक कहलाता है।

1-वायु का अपवर्तनांक 1.003
2-बर्फ का अपवर्तनांक 1.31
3-जल का अपवर्तनांक 1.33
4-एल्कोहल का अपवर्तनांक 1.36
5-केरोसिन का अपवर्तनांक 1.44
6-हीरा का अपवर्तनांक 2.42

जल का अपवर्तनांक 1.33 का अर्थ है कि वायु में प्रकाश का वेग तथा जल में प्रकाश के वेग का अनुपात 1.33 है।

किसी माध्यम की प्रकाश को अपवर्तित करने की क्षमता को उसके प्रकाशित घनत्व के द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है।

दो माध्यमों की तुलना करते समय अधिक अपवर्तनांक वाला माध्यम दूसरे की अपेक्षा प्रकाशिक संघन है।

दूसरा कम अपवर्तनांक वाला माध्यम प्रकाशित विरल माध्यम है।विरल माध्यम में प्रकाश की चाल सघन माध्यम की अपेक्षा अधिक होती है,अतः विरल माध्यम से सघन माध्यम में गमन करने वाली प्रकाश की किरणें धीमी हो जाती हैं तथा अभिलंब की ओर झुक जाती हैं। जब यह सघन माध्यम से विरल माध्यम में गमन करती है तो उसकी चाल बढ़ जाती है तथा यह अभिलंब से दूर हट जाती हैं।

गोलीय लेंस द्वारा अपवर्तन:-

दो पृष्ठों से घिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम जिनका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय है, लेंस कहलाता है।

किसी लेंस में बाहर की ओर उभरे दो गोलीय पृष्ठ हो सकते हैं। ऐसे लेंस को द्वि- उत्तल लेंस कहते हैं।इसे केवल उत्तल लेंस भी कहते हैं।यह किनारो की अपेक्षा बीच में मोटा होता है।इसे अभिसारी लेंस भी कहते हैं।

द्वि-अवतल लेंस अंदर की ओर वक्रित दो गोलीय पृष्ठों से घिरा होता है। इसे अवतल लेंस भी कहा जाता है।यह बीच की अपेक्षा किनारो से मोटा होता है।इसे अपसारी लेंस भी कहते हैं।

किसी लेंस में चाहे वह उत्तल हो या अवतल दो गोलीय पृष्ठ होते हैं।इनमें से प्रत्येक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है। इन गोलों का केंद्र लेंस के वक्रता केंद्र कहलाते हैं।

लेंस का वक्रता केंद्र प्रायः अक्षर C द्वारा निरूपित किया जाता है, क्योंकि लेंस के दो वक्रता केंद्र है इसलिए इन्हें C1 तथा C2 द्वारा निरूपित किया जाता है।

किसी लेंस के दोनों वक्रता केंद्रों से गुजरने वाली एक काल्पनिक सीधी रेखा लेंस की मुख्य अक्ष कहलाती है।

लेंस का केंद्रीय बिंदु उसका प्रकाशिक केंद्र कहलाता है। ।इसे प्रायः अक्षर O से निरूपित किया जाता है।

लेंस के प्रकाशित केंद्र से गुजरने वाली प्रकाश किरण बिना किसी विचलन के निर्गत होती है।

गोलीय लेंस की वृताकार रूपरेखा का प्रभावी व्यास इसका द्वारा कहलाता है।

उत्तल लेंस पर मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश की बहुत सी किरणें आपतित हैं। यह किरण लेंस के अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष पर एक बिंदु पर अभिसारित हो जाती हैं। मुख्य अक्ष पर यह बिंदु लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है।

अवतल लेंस पर मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश की अनेक किरणें आपतित हो रही हैं। यह किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के एक बिंदु से अपसरित होती प्रतीत होती हैं। मुख्य अक्ष पर यह बिंदु अवतल लेंस का मुख्य फोकस कहलाता है।

किसी लेंस में दो मुख्य फोकस होते हैं।। इन्हें F1 तथा F2 द्वारा निरूपित किया जाता है।किसी लेंस के मुख्य फोकस की प्रकाशिक केंद्र से दूरी फोकस दूरी कहलाती है।फोकस दूरी को अक्षर f द्वारा निरूपित किया जाता है।

किरण आरेखों के उपयोग द्वारा लेंस से प्रतिबिंब बनना:-

लेंस में किरण आरेख बनाने के लिए हम निम्न में से किन्ही दो किरणों पर विचार कर सकते हैं: –

1-बिंब से मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली कोई प्रकाश किरण उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात लेंस की दूसरी ओर मुख्य फोकस से गुजरेगी। अवतल लेंस की स्थिति में प्रकाश किरण लेंस के उसी ओर स्थित मुख्य फोकस से अपसरित होती प्रतीत होगी।

2-मुख्य फोकस से होकर गुजरने वाली प्रकाश किरण उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर निर्गत होगी। अवतल लेंस की मुख्य फोकस पर मिलती प्रतीत होने वाली प्रकाश किरण, अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर निर्गत होगी।

3-लेंस के प्रकाशिक केंद्र से गुजरने वाली प्रकाश किरण अपवर्तन के पश्चात बिना किसी विचलन के निर्गत होगी।

लेंस द्वारा प्रतिबिंब बनना:-

लेंस प्रकाश के अपवर्तन द्वारा प्रतिबिंब बनाते हैं।

उत्तल लेंस द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति, स्थिति तथा अपेक्षित साइज : –

(बिंब की स्थिति)- अनंत पर
(प्रतिबिंब की स्थिति) फोकस F2 पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक छोटा, बिंदु आकार
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

(बिंब की स्थिति)- 2F1 से परे
(प्रतिबिंब की स्थिति)- F2 और 2F2 के बीच
(प्रतिबिंब का साइज़)- छोटा
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

बिंब की स्थिति)-2F1 पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- 2F2 पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- समान साइज़
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

बिंब की स्थिति)- F1 तथा 2F1 के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति)- 2F2 से परे
(प्रतिबिंब का साइज़)- बड़ा (विवर्धित)
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

बिंब की स्थिति) फोकस F1 पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- अनंत पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक विवर्धित
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-वास्तविक एवं उल्टा

बिंब की स्थिति)- फोकस F1 तथा प्रकाशिक केंद्र O के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति)- जिस ओर बिंब है,लेंस के उसी ओर
(प्रतिबिंब का साइज़)- बड़ा (विवर्धित)
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-आभासी तथा सीधा

अवतल लेंस द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति, स्थिति तथा अपेक्षित साइज : –

बिंब की स्थिति)- अनंत पर
(प्रतिबिंब की स्थिति)- फोकस F1 पर
(प्रतिबिंब का साइज़)- अत्यधिक छोटा, बिंदु आकर
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-आभासी तथा सीधा

बिंब की स्थिति) अनंत तथा लेंस के प्रकाशिक केंद्र O के बीच
(प्रतिबिंब की स्थिति) फोकस F1 तथा प्रकाशिक केंद्र O के बीच
(प्रतिबिंब का साइज़) छोटा
(प्रतिबिंब की प्रकृति)-आभासी तथा सीधा

गोलीय लेंस के लिए चिन्ह परिपाटी:-

जहां दर्पणों में सभी दूरियां उनके ध्रुव से नापी जाती थी वहां लेंस में सभी दूरियां उनके प्रकाशित केंद्र से लिए जाते हैं।

परिपाटी के अनुसार उत्तल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक होती है, जबकि अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है।

लेंस सूत्र तथा आवर्धन: –

बिंब दूरी(u) प्रतिबिंब दूरी और फोकस दूरी के बीच इन तीन राशियों के बीच एक संबंध है,जिसे लेंस सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

सूत्र:- 1/v- 1/u=1/f

यह लेंस सूत्र किसी भी गोलीय लेंस के लिए सभी स्थितियों में मान्य है।

आवर्धन:-

यदि बिंब की ऊंचाई h हो तथा लेंस द्वारा बनाए गए प्रतिबिंब की ऊंचाई h’ हो,तब लेंस द्वारा उत्पन्न आवर्धन होगा-

सूत्र:- आवर्धन (m)=h’/h

आवर्धन(m) बिंब दूरी(u) तथा प्रतिबिंब दूरी(v) से भी संबंधित है। इसे व्यक्त किया जाता है:-

सूत्र:- m= h’/h= v/u

लेंस की क्षमता:-

किसी लेंस की प्रकाश किरणों को अभिसरित तथा अपसरित करने की क्षमता इसकी फोकस दूरी पर निर्भर करती है।

उदाहरण – कम फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस प्रकाश किरणों को बड़े कोण से मोड़कर उन्हें प्रकाशित केंद्र के निकट फोकसित कर देता है।

किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण या अपसरण करने की मात्रा को उसकी क्षमता के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे अक्षर P द्वारा निरूपित किया जाता है।

किसी f फोकस दूरी के लेंस की क्षमता होती है:-

सूत्र:- P=1/f

f मीटर में होता है।

लेंस की क्षमता का S.I मात्रक डाइऑप्टर(Dioptre)होता है। इसे अक्षर D द्वारा दर्शाया जाता है।

1 डाइऑप्टर (Dioptre) उस लेंस की क्षमता है जिसकी फोकस दूरी 1 मीटर हो।

उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की ऋणात्मक होती है।

END OF THIS CHAPTER.

CHAPTER- रंगबिरंगा संसार

INTRODUCTION

मानव नेत्र प्रकाश का उपयोग करता है तथा हमारे चारों ओर की वस्तुओं को देखने के लिए हमें समर्थ बनाता है।

नेत्र की संरचना में एक लेंस होता है।

TOPIC NO.1- मानव नेत्र

मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है।

आंखों को बंद करके हम वस्तुओं को उनके गंध,स्वाद उनके द्वारा उत्पन्न ध्वनि या स्पर्श करके कुछ सीमा तक पहचान सकते हैं।आंखों को बंद करके रंगों को पहचान पाना संभव है।

मानव नेत्र एक कमरे की भांति है, इसका लेंस एक प्रकाश सुग्राही पर्दे,जिसे रेटिना या दृश्यपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनता है।

प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है,इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।

यह झिल्ली नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर एक पारदर्शी उभार बनाती है। नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 सेंटीमीटर होता है।

नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है।

कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है,जिसे परितारिका कहते हैं।परितारिका गहरा पेशीय डायाफ्राम होता है, जो पुतली के साइज को नियंत्रित करता है।

पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।

नेत्र लेंस रेटिना पर किसी वस्तु का उल्टा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनता है।

रेटिना एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है,जिसमें वृहद संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती हैं। प्रदीप्त होने पर प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती हैं।यह सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है तथा अंततः इस सूचना को संसाधित करता है जिससे कि हम किसी वस्तु को जैसा है,वैसा ही देख लेते हैं।

नेत्रोद:- आंख के अंदर मौजूद एक तरल पदार्थ को नेत्रोद कहते हैं।यह कॉर्निया और लेंस के बीच के स्थान में होता है।नेत्रोद को जलीय ह्यूमर (Aqueous Humour) भी कहा जाता है।यह आंख के अंदर एक विशेष दबाव बनाए रखता है।यह आंख की गोलाकार आकृति को बनाए रखने में मदद करता है।यह लेंस, कॉर्निया जैसे आंख के आंतरिक अंगों को पोषण पहुंचाता है।यह इन अंगों से मल पदार्थ को निकालने में भी मदद करता है।

दृक् तंत्रिका:- आंखों से जुड़ी तंत्रिका को दृष्टि तंत्रिका या ऑप्टिक तंत्रिका कहते हैं।यह तंत्रिका, आंखों से आने वाले दृश्य संकेतों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है।यह एक केबल की तरह काम करती है जो आंखों से आने वाले दृश्य संकेतों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है।

पक्ष्माभी पेशियां:- आंख की सिलिअरी मांसपेशियों को पक्ष्माभी पेशियां कहा जाता है।ये आंख की एक आंतरिक मांसपेशी है। ये पेशियां लेंस की फ़ोकस दूरी को बदलती हैं,जिससे रेटिना पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनता है।ये पेशियां आंख की समंजन क्षमता को नियंत्रित करती हैं।ये पेशियां अलग-अलग दूरी पर वस्तुओं को देखने के लिए समायोजन करती हैं।

काचाभ द्रव:-काचाभ द्रव, आंखों के अंदर भरा एक जैली जैसा द्रव होता है।यह नेत्रगोलक के अंदर भर होता है और आंखों के आकार को बनाए रखने में मदद करता है।काचाभ द्रव, रेटिना तक पहुंचने वाले प्रकाश को भी गुज़रने देता है।यह एक पारदर्शी जेल होता है।यह 99% पानी से मिलकर बना होता है।
यह लेंस और रेटिना के बीच के अंतरिक्ष को भरता है।यह आंखों को फुलाए रखने में मदद करता है।यह नेत्र को उसके आकार को बरकरार रखने में मदद करता है।

दृष्टि तंत्र में किसी भी भाग के क्षतिग्रस्त होने से दृष्टि प्रकार्याे में सार्थक क्षति हो सकती है।

समंजन क्षमता:– अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन क्षमता कहलाती है।

अभिनेत्र लेंस रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है।इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा रूपांतरण किया जा सकता है।लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है।

जब पेशियां शिथिल होती हैं तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है।इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तु को स्पष्ट देखा पानी में समर्थ होते हैं।

जब आंख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं, तब पक्ष्माभी पेशियां सिकुड़ जाती हैं।इससे अभिनेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती है। अभिनेत्र लेंस अब मोटा हो जाता है,परिणामस्वरुप अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती।किसी वस्तु को आराम से सुस्पष्ट देखने के लिए हमें नेत्रों से कम से कम 25 सेमी दूर रहना होगा।

निकट बिंदु:- वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है,उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पम दूरी कहते हैं। इसे नेत्र का निकट बिंदु भी कहते हैं।सामान्य नेत्र के लिए यह लगभग 25 सेमी होती है।

दूर बिंदु:-वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर बिंदु कहलाता है।सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।

कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुंधला हो जाता है,इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं।इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से आपको देखने में समस्या पैदा हो जाती हैं। मोतियाबिंद की शैल्य चिकित्सा के पश्चात दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।

दृष्टि के लिए हमारे दो नेत्र क्यों हैं? केवल एक ही क्यों नहीं? -एक नेत्र की बजाय दो नेत्र होने के अनेक लाभ हैं। इससे हमारे दृष्टि क्षेत्र विस्तृत होता है। मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150 डिग्री होता है, जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180 डिग्री हो जाता है।

प्रत्येक नेत्र किसी वस्तु का थोड़ा सा भिन्न प्रतिबिंब देखता है।हमारा मस्तिष्क दोनों प्रतिबिंबों का समायोजन करके एक प्रतिबिंब बना देता है।

TOPIC NO.2- दृष्टि दोष तथा उसका संशोधन

कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता को खो सकते हैं। ऐसी स्थितियों में व्यक्ति वस्तुओं को आराम से स्पष्ट नहीं देख पाते।

प्रमुख रूप से दृष्टि के तीन सामान्य अपवर्तन दोष होते हैं:-

1-निकट दृष्टि दोष(Myopia)
2-दीर्घ दृष्टि दोष(Hypermetropia)
3-जरा दूरदृष्टिता(Presbyopia)

इन देशों को उपयुक्त गोलीय लेंस की उपयोग से संशोधित किया जा सकता है।

A-निकट दृष्टि दोष- इसका दूसरा नाम निकटदृष्टिता(Near Sightedness)भी कहते हैं। इसमें कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तु को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता।

ऐसे व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है। ऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तुओं को ही सुस्पष्ट देख पाता है।

निकट दृष्टि दोष युक्त नेत्र में किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल रेटिना पर न बनकर दृष्टिपटल के सामने बनता है।

इस दोष के उत्पन्न होने के कारण है:-

1-अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना।
2-नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।

इस दोष को अवतल लेंस (अपसारी लेंस) के प्रयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।

B-दीर्घ दृष्टि दोष-इसका दूसरा नाम दूरदृष्टिता(Far Sightedness)भी कहते हैं। इसमें कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है।

ऐसे व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु से दूर हो जाता है।ऐसे व्यक्ति को आराम से सुस्पष्ट पढ़ने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 सेंटीमीटर से काफी अधिक दूरी पर रखना पड़ता है।

दीर्घ दृष्टि दोष युक्त नेत्र में किसी पास रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल रेटिना पर न बनकर दृष्टिपटल के पीछे बनता है।

इस दोष के उत्पन्न होने के कारण है:-

1-अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना।
2-नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।

इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस(उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है।

C-जरा दूरदृष्टिता- कुछ व्यक्ति को वृद्धावस्था के दौरान निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष दोनों एक साथ हो जाते हैंl इसे जरा दूरदृष्टिता कहते हैं l

ऐसे व्यक्ति को द्विफोकसी लेंस की आवश्यकता होती है। इसमें ऊपरी भाग अवतल लेंस होता है। यह दूर की वस्तु को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता है। निचला भाग उत्तल लेंस होता है।यह पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायक होता है।

TOPIC NO.3- प्रिज्म से प्रकाश का अपवर्तन

प्रिज्म एक ऐसा पारदर्शी माध्यम होता है, जो तीन आयताकार और दो त्रिभुजाकार परतों से घिरा होता है।

आयताकार सतह प्रकाश को अपवर्तित करती है।

दो भुजा के बीच एक कोण बनता है, जिसे प्रिज्म कोण कहते हैं। एक आदर्श प्रिज्म को 60 डिग्री होता है।[90 डिग्री से कम)

कांच की त्रिभुज प्रिज्म से गुजरने पर प्रकाश किस प्रकार से अपवर्तित होता है- यहां PE आपतित किरण है,EF अपवर्तित किरण है तथा FS निर्गत किरण है। पहले पृष्ठ AB पर प्रकाश की किरण वायु से कांच में प्रवेश कर रही है। अपवर्तन के पश्चात प्रकाश की किरण अभिलंब की ओर मुड़ जाती है। दूसरे पृष्ठ AC पर प्रकाश की किरण कांच से वायु में प्रवेश कर रही है, अत: यह अभिलंब से दूर जाती है।

विचलन कोण-प्रिज्म की विशेष आकृति के कारण निर्गत किरण,आपतित किरण की दिशा से एक कोण बनाती है,इस को विचलन कोण कहते हैं।

प्रिज्म का अपवर्तनांक=प्रिज्म के अपवर्तन का सूत्र यह है: μ = sin(A + δm)/2 / sin(A/2), जहाँ μ प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक है, A प्रिज्म का कोण है, और δm न्यूनतम विचलन कोण है।

TOPIC NO.4-कांच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

प्रिज्म आपतित श्वेत प्रकाश(सूर्य का प्रकाश)को विभिन्न रंगों की पट्टी में विभक्त कर देते हैं।

1-बैगनी(Violet)
2-जामुनी(Indigo)
3-नीला
4-हरा
5-पीला
6-नारंगी
7-लाल

VIBGYOR के द्वारा इस क्रम को याद रखा जा सकता है।

स्पेक्ट्रम- प्रकाश की अवयवी वर्णों के बैंड को स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

विक्षेपण-प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहा जाता है।

श्वेत प्रकाश प्रिज्म द्वारा इसके साथ अवयवी वर्णों में विक्षेपित हो जाता है।

किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात प्रकाश के विभिन्न वर्ण आपतित किरण की सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं।

लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।

न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए कांच के प्रिज्म का उपयोग किया था।एक दूसरा सामान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया किंतु उन्हें और अधिक वर्णन नहीं मिल पाए।

सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना हुआ है।

इंद्रधनुष- वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है।इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है। जल की छोटे-छोटे बूंद प्रिज्म की भांति कार्य करते हैं।

TOPIC NO.5- वायुमंडलीय अपवर्तन

गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में हल्की कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है।

अपवर्तन माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएं स्थिर नहीं होती हैं,इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है। इस प्रकार यह अस्थिरता हमारे स्थानीय पर्यावरण में लघु स्तर पर वायुमंडलीय अपवर्तन (पृथ्वी के वायुमंडल के कारण प्रकाश का अपवर्तन) का ही प्रभाव है।तारों का टिमटिमाना बृहद स्तर की ऐसी ही परिघटना है।

तारों का टिमटिमाना:- तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं।

पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुंचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता रहता है।

वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका देता है, अतः तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तविक स्थिति से कुछ भिन्न प्रतीत होती है।

तारे की यह आभासी स्थिति भी स्थाई न होकर धीरे-धीरे थोड़ी बदलती भी रहती है, क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल की भौतिक अवस्थाएं स्थाई नहीं है।अतः तारों से आने वाली प्रकाश किरणें का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, इसलिए तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आंखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है।

ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते हैं?

ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास है।इससे हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा,इसी कारण टिमटिमाने का प्रभाव खत्म हो जाएगा।

अग्रिम सूर्योदय तथा विलंबित सूर्यास्त क्या है?


वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त से लगभग 2 मिनट पश्चात तक दिखाई देता रहता है।

वास्तविक सूर्योदय से हमारा अर्थ है सूर्य द्वारा वास्तव में क्षितिज को पार करना।

TOPIC NO.6- प्रकाश का प्रकीर्णन

टिंडल प्रभाव क्या है?

पृथ्वी का यह वायुमंडल सूक्ष्म कणों का एक विषमांगी मिश्रण है। इन कणों में धुआं,जल की बूंद धूल के कण तथा वायु के कण सम्मिलित होते हैं।जब कोई प्रकाश किरण ऐसे महीन कण से टकराता है, तो उस किरण का मार्ग दिखाई देने लगता है।घने जंगल में सूर्य के प्रकाश गुजरता है तो उसमें टिंडल प्रभाव देखा जा सकता है।

स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है?

लाल रंग के प्रकाश का तरंगधैर्य नीला प्रकाश की अपेक्षा लगभग 1.8 गुनी है। अतः जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है,तब वायु के छोटे कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग( छोटी तरंगधैर्य) को अधिक प्रबलता से उसका प्रकीर्णन करते हैं। प्रकीर्णन हुआ नीला प्रकाश हमारी नेत्रों में प्रवेश करता है और हमें आकाश नीला दिखाई देता है।यदि पृथ्वी पर वायुमंडल न होता तो कोई प्रकीर्णन न हो पाता,तब आकाश काला प्रतीत होता। अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला प्रतीत होता है क्योंकि इतनी ऊंचाई पर प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता।

सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग?

क्षितिज-क्षितिज वह रेखा या वृत्त है जो धरती और आकाश के बीच की सीमा को स्पष्ट करता है। यह एक ऐसा बिंदु है जहाँ हमें धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं।

रक्ताभ” शब्द का अर्थ है “लाल आभा वाला” या “लाल रंग का” यह शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसमें “रक्त” का अर्थ लाल रंग और “आभ” का अर्थ आभा या चमक होता है।क्षितिज के समीप स्थित सूर्य से आने वाले प्रकाश हमारे नेत्रों तक पहुंचने से पहले पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों से गुजरता है। जब सूर्य सर के ठीक ऊपर हो तो सूर्य से आने वाले प्रकाश अपेक्षाकृत कम दूरी चलेगा।दोपहर के समय सूर्य श्वेत प्रतीत होता है क्योंकि नीला तथा बैंगनी वर्ण का बहुत थोड़ा भाग ही प्रकीर्ण हो पता है । क्षितिज के समीप नीला तथा कम तरंग धैर्य के प्रकाश का अधिकांश भाग कणो द्वारा प्रकीर्ण हो जाता है,इसलिए हमारे नेत्र तक पहुंचने वाला प्रकाश अधिक तरंग धैर्य का होता हैl इससे सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।

प्रकाश की प्रकीर्णन के कारण:-आकाश का रंग नीला तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।

वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण:-तारों को टिमटिमाना तथा अग्रिम सूर्योदय तथा विलंबित सूर्यास्त होता है।

END OF THIS CHAPTER.

CHAPTER-हमारा पर्यावरण:-

पर्यावरण- किसी जीव के चारों ओर के भौतिक, रासायनिक और जैविक तत्वों का एक समूह है,जो उसे प्रभावित करता है।

पर्यावरण के घटक:

1-भौतिक घटक: हवा, पानी, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश।

2-रासायनिक घटक: कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, आदि।

3-जैविक घटक: पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव, आदि।

हमारे द्वारा खाए गए भोजन का पाचन विभिन्न एंजाइमों द्वारा किया जाता है। एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। किसी विशेष प्रकार के पदार्थ के पाचन के लिए विशिष्ट एंजाइम की आवश्यकता होती है।

एंजाइम:-एंजाइम एक प्रकार का प्रोटीन है जो शरीर में रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करता है।एंजाइमों को “जैविक उत्प्रेरक” भी कहा जाता है।

भोजन करने से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है, लेकिन कोयला खाने से हमें ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकती।इसी कारण बहुत से मानव निर्मित पदार्थ जैसे- प्लास्टिक का अपघटन जीवाणु द्वारा नहीं हो सकता। इन पदार्थों पर भौतिक प्रकरण जैसे कि उसमें ताप और दाब का प्रभाव पड़ता है परंतु यह सामान्य अवस्था में लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।

जैव निम्नीकरण पदार्थ:- वह पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा घटित हो जाते हैं। जैसे फल के छिलके,पत्ते इत्यादि।

अजैव निम्नीकरण पदार्थ:- वह पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा घटित नहीं होते हैं। जैसे प्लास्टिक इत्यादि।

WORK ON PROGRESS…

× How can I help you?