Skip to content

OZONE LAYER AND HOW IT IS GETTING DEPLETED?

पर्यावरण में परिवर्तन हमें प्रभावित करते हैं तथा हमारे क्रियाकलाप हमारे चारों ओर के पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

ओजोन परत का अपक्षय:- मानव जनसंख्या तेज गति से बढ़ रही है और औद्योगीकरण के कारण प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले संसाधनों की मांग बहुत अधिक बढ़ गई है। यदि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सही कदम,सही समय पर नहीं उठाए गए तो मानव जाति को घोर संकट का सामना करना पड़ सकता है।

औद्योगीकरण के कारण निम्न समस्याएं सामने उत्पन्न हुई है:-
1-हमारा वायुमंडल काफी प्रदूषित हो चुका है।
2-नदियों और तालाबों की जल पीने योग्य नहीं।
3-वन्य जीव संकट में पड़ गया है।
4-मृदा अपरदन में वृद्धि हुई है
5-सुखा तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई है।
6-नई-नई बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।
7-ओजोन परत की मोटाई कम हो रही है।
8-ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वायुमंडल का ताप बढ़ गया है।
9-हिमनद की बर्फ पिघलने लगी है।
10-प्राकृतिक जल से सीमित हो गए हैं।

ओजोन परत का अपक्षय:- वायुमंडल में भूमि की सतह से लगभग 50 किलोमीटर ऊपर समतापमंडल में ओजोन गैस का एक सघन स्तर पाया जाता है,जिसे ओजोन परत कहा जाता है।यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों(UV) को अंतरिक्ष में अवशोषित एवं परावर्तित कर जैवमंडल की सुरक्षा करती है। वायुमंडल में ओजोन गैस पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर निरंतर ऑक्सीजन एवं ऑक्सीजन मुक्त मूलक मे विघटित एवं संगठित होती रहती है, जिसके कारण ओजोन की सांद्रता नियत बनी रहती है।

समतापमंडल में 1980 से ओजोन परत पतली होती जा रही है,जिसे ओजोन छिद्र कहते हैं। इसका मुख्य कारण मानव द्वारा CFC(Chlorofluorocarbons) का अत्यधिक उपयोग है।

CFC में Freon सबसे अधिक घातक CFC गैस है, इसका प्रयोग रेफ्रिजरेटर,एयर कंडीशनर(AC) आदि में होता है।

1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) में सर्वानुमति बनी कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC) के उत्पादन को 1986 के स्तर पर रखा जाए।

वायुमंडल में CFC पराबैंगनी किरणों द्वारा विघटित होकर क्लोरीन अणु उत्पन्न करता है,जो ओजोन से क्रिया कर उसे तेजी से विघटित कर देता है। प्राय: एक क्लोरीन अणु एक लाख ओजोन अणुओं को विघटित कर देते हैं।

CFC के अतिरिक्त ओजोन परत के अपक्षय में Carbon Tetrachloride,हैलोजन गैस, क्लोरोफॉर्म,विरंजकों,जेट विमान से निकली नाइट्रिक ऑक्साइड(NO) आदि का भी प्रमुख योगदान है।

विश्व की सर्वाधिक पतली ओजोन परत अंटार्कटिका पर पाई जाती है।ओजोन परत की मोटाई को Dobson इकाई में मापा जाता है। समतापमंडल में ओजोन परत की मोटाई लगभग 330 DU है।

ओजोन परत अपक्षय मानव,पादप और जंतु पर प्रभाव डालते हैं।

मानव पर प्रभाव:- जलन,त्वचा कैंसर, अंधापन, गंजापन,बालों का सफेद होना, अनुवांशिक विकार इत्यादि।
पादपो पर प्रभाव:- उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण आदि में कमी।
जंतुओं पर प्रभाव:- घरेलू जानवरों में नेत्र संबंधित रोग तथा त्वचा कैंसर तथा मछलियों की संख्या में कमी।

ओजोन परत के अपक्षय को कम करने हेतु पर्यावरण हितैषी CFCs विहीन फ्रिज तथा AC का उपयोग करना चाहिए।

वर्ष 1985 में ओजोन परत के संरक्षण हेतु यूरोप के वियना में वैश्विक सम्मेलन हुआ तथा 16 सितंबर 1987 में कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में हुए वैश्विक समझौते या मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल(Montreal Protocol)पर 46 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए,जिसमें वायुमंडल में ओजोन के स्तर को 1986 के स्तर पर लाना तय किया गया।

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने लोगों को जागरूकता लाने के उद्देश्य 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस(World Ozone day) के रूप में मनाना घोषित किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× How can I help you?