जीवधारी के वर्गीकरण को वैज्ञानिक आधार
“जान रे” नामक वैज्ञानिक ने प्रदान किया लेकिन जीवधारी के आधुनिक वर्गीकरण में सबसे प्रमुख योगदान स्वीडिश वैज्ञानिक “कैरोलस लिनियस” का है।
इन्होंने अपनी पुस्तक “Systema Naturae” में संपूर्ण जीवधारियों को दो जगत (Kingdoms) में विभाजित किया है:-
1-पादप जगत(Plant kingdom)
2-जंतु जगत(Animal Kingdom)
वर्गिकी के पिता(Father of Taxonomy) “कैरोलस लिनियस” को कहा जाता है।
द्वि-जगत वर्गीकरण का स्थान 1969 ई. में “R.H. Whittaker” द्वारा प्रस्तावित पांच जगत प्रणाली ने ले लिया। उनके अनुसार समस्त जीवों को निम्नलिखित पान जगत(Kingdoms)में वर्गीकृत किया गया:-
1-मोनेरा(Monera)
2-प्रोटिस्टा(Protista)
3-पादप(plantae)
4-कवक(Fungi)
5-एनीमेलिया(Animalia)
(1)-मोनेरा(Monera):- इसके अंतर्गत सभी प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात जीवाणु,सायनोबैक्टीरिया तथा आर्कीबैक्टीरिया सम्मिलित किए गए हैं।
साइनोबैक्टीरिया:- जिसे नीले-हरे शैवाल के रूप में भी जाना जाता है। यह ऐसे बैक्टीरिया हैं, जिनमें पौधों की कुछ विशेषताएं होती हैं। वे पूरी दुनिया में ज़मीन पर और झीलों,नदियों और तालाबों में, और मुहाने और समुद्री जल (महासागरों) में पाए जाते हैं।
आर्कीबैक्टीरिया:-आर्कीबैक्टीरिया सूक्ष्मजीवों का एक प्राचीन समूह है,जो बैक्टीरिया से अलग है और विशेष रूप से चरम वातावरण में जीवित रहने के लिए जाना जाता है। वे एककोशिकीय और प्रोकैरियोटिक होते हैं,लेकिन उनके आनुवंशिक और जैवरासायनिक गुण बैक्टीरिया और यूकेरियोट्स दोनों से भिन्न होते हैं।
(2)-प्रोटिस्टा(Protista):- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय जीव जैसे- जलीय यूकैरियोटिक जीव सम्मिलित किए गए हैं।
पादप एवं जंतु के बीच स्थित “यूग्लीना” इसी जगत में है। यह दो प्रकार के जीवन पद्धति प्रदर्शित करते हैं।
यूग्लीना(Euglena):- एक एककोशिकीय प्रोटोजोआ संघ का प्राणी है। इसे जंतुओं और पादपों के बीच की योजक कड़ी कहते हैं ।
(3)-पादप(plantae):- इसके अंतर्गत बहुकोशिकीय, प्रकाश संश्लेषण वाले उत्पादक जीव सम्मिलित हैं। शैवाल इसके अंतर्गत आता है।
(4)-कवक(Fungi):- इसके अंतर्गत यूकैरियोटिक तथा परपोषित जीवधारी सम्मिलित किए गए हैं,जिसमें अवशोषण द्वारा पोषण होता है। यह सभी इतरपोषी होते हैं।यह परजीवी अथवा मृतोपजीवी होते हैं।
इतरपोषी:-“इतरपोषी” का मतलब है “विषमपोषी” या “हेटरोट्रॉफ़िक” । यह एक ऐसा जीव है, जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहता है।
मृतोपजीवी:-वह जीव होते हैं,जो अपना (Heterotroph) भोजन मृत और सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं।
परजीवी(Saprotroph):-परजीवी ऐसे जीव होते हैं जो दूसरे जीव (मेजबान) पर निर्भर रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। वे मेजबान से भोजन, आश्रय और अन्य पोषक तत्व प्राप्त करते हैं, जिससे मेजबान को नुकसान हो सकता है।
(5)-एनीमेलिया(Animalia):- इस जगत में सभी बहुकोशिकीय जंतु समभोजी(Holozoic) यूकेरियोटिक,उपभोक्ता जीव सम्मिलित किए गए हैं।इनको मेटाजोआ (Metazoa)भी कहते हैं। हाइड्रा,जेलीफिश,कृमि,सितारा मछली, सरीसृप, उभयचर, पक्षी तथा स्तनधारी जीव इसी जगत के अंग है।
समभोजी(Holozoic):-प्राणी समभोजी” (Holozic) एक पोषण विधि है,जिसमें जीव भोजन को ठोस या तरल रूप में ग्रहण करते हैं,और फिर उसका पाचन शरीर के अंदर होता है। यह विधि अमीबा, मेढक, और मनुष्य जैसे जीवों में पाई जाती है।
मेटाजोआ (Metazoa):- मेटाज़ोअन या जानवर यूकेरियोटिक बहुकोशिकीय जीव हैं। वे एनिमेलिया साम्राज्य से संबंधित हैं।
प्रोकैरियोटिक(Prokaryotic):- यह सरल,छोटी होती हैं तथा उनमें झिल्ली-बद्ध कोशिकांग नहीं होते हैं।जैसे-बैक्टीरिया,आर्किया,नीले-हरे शैवाल (सायनोबैक्टीरिया)।
यूकेरियोटिक(Eukaryotic):-यह बड़ी,अधिक जटिल होती हैं, तथा उनमें नाभिक और अन्य कोशिकांग होते हैं।जैसे-पादप कोशिकाएँ, पशु कोशिकाएँ (मानव कोशिकाएँ),और कवक (यीस्ट)।